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है फ़सीलें उठा रहा मुझ में | शाही शायरी
hai fasilen uTha raha mujh mein

ग़ज़ल

है फ़सीलें उठा रहा मुझ में

जौन एलिया

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है फ़सीलें उठा रहा मुझ में
जाने ये कौन आ रहा मुझ में

'जौन' मुझ को जिला-वतन कर के
वो मिरे बिन भला रहा मुझ में

मुझ से उस को रही तलाश-ए-उमीद
सो बहुत दिन छुपा रहा मुझ में

था क़यामत सुकूत का आशोब
हश्र सा इक बपा रहा मुझ में

पस-ए-पर्दा कोई न था फिर भी
एक पर्दा खिंचा रहा मुझ में

मुझ में आ के गिरा था इक ज़ख़्मी
जाने कब तक पड़ा रहा मुझ में

इतना ख़ाली था अंदरूँ मेरा
कुछ दिनों तो ख़ुदा रहा मुझ में