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है दिल में ख़याल-ए-गुल-ए-रुख़्सार किसी का | शाही शायरी
hai dil mein KHayal-e-gul-e-ruKHsar kisi ka

ग़ज़ल

है दिल में ख़याल-ए-गुल-ए-रुख़्सार किसी का

सिराज औरंगाबादी

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है दिल में ख़याल-ए-गुल-ए-रुख़्सार किसी का
दाग़ों सीं मोहब्बत के है गुलज़ार किसी का

जाता है मिरा जान निपट प्यास लगी है
मंगता हूँ ज़रा शर्बत-ए-दीदार किसी का

सब पर है करम मुझ पे सितम क्या है दो-रंगी
दिलदार किसी का है दिल-आज़ार किसी का

ज़ंजीर भली क़ैद भली मौत भी ज्यूँ-त्यूँ
पन हक़ न करे किस कूँ गिरफ़्तार किसी का

मैं हूँ तो दिवाना प किसी ज़ुल्फ़ का नईं हूँ
वल्लाह कि रखता नहीं यक तार किसी का

यक दम तो हम-आग़ोश करो ऐ गुल-ए-ख़ूबी
हो जाऊँगा अब नईं तो गले हार किसी का

झुकता है ज़रा बाद के चलने में ज़मीं पर
नर्गिस है मगर बाग़ है बीमार किसी का

लाती है ख़बर यार की मौज-ए-दम-ए-शमशीर
कारी है मगर दिल में मिरे वार किसी का

हर रात 'सिराज' आतिश-ए-ग़म में न जले क्यूँ
परवाना-ए-जाँ-सोज़ है बलहार किसी का