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है दिल को इस तरह से मिरे यार की तलाश | शाही शायरी
hai dil ko is tarah se mere yar ki talash

ग़ज़ल

है दिल को इस तरह से मिरे यार की तलाश

मियाँ दाद ख़ां सय्याह

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है दिल को इस तरह से मिरे यार की तलाश
जिस तरह थी कलीम को दीदार की तलाश

हों रिंद सर खुला भी जो होवे तो डर नहीं
ज़ाहिद नहीं कि मुझ को हो दस्तार की तलाश

मैं हूँ कहीं प आठों पहर है उसी की फ़िक्र
जाती नहीं है दिल से मिरे यार की तलाश

दिल हाथों-हाथ बिक गया बाज़ार-ए-इश्क़ में
करनी पड़ी न मुझ को ख़रीदार की तलाश

अपने ही दिल में ढूँढना लाज़िम था यार को
इतने दिनों जो की भी तो बे-कार की तलाश

बैआना नक़्द-ए-जाँ करो 'सय्याह' पेश-कश
रहती है उन को ऐसे ख़रीदार की तलाश