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है धूप तेज़ कोई साएबान कैसे हो | शाही शायरी
hai dhup tez koi saeban kaise ho

ग़ज़ल

है धूप तेज़ कोई साएबान कैसे हो

सिया सचदेव

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है धूप तेज़ कोई साएबान कैसे हो
ये वक़्त हम पे भला मेहरबान कैसे हो

न लफ़्ज़ हो तो कोई दास्तान कैसे हो
ज़बान काट ली तुम ने बयान कैसे हो

हमारे हिस्से में दो-गज़ ज़मीन भी तो नहीं
हमारे हक़ में कोई आसमान कैसे हो

अड़े रहेंगे अगर अपनी ज़िद पे दोनों फ़रीक़
तो कोई फ़ैसला भी दरमियान कैसे हो

गँवा न बैठूँ कहीं तुझ को आज़माने में
मैं डर रही हूँ तिरा इम्तिहान कैसे हो

जो बात झूट है सच कैसे मान लूँ उस को
बताओ दूर ये वहम-ओ-गुमान कैसे हो