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है दाग़ दाग़ मिरा दिल मगर मलूल नहीं | शाही शायरी
hai dagh dagh mera dil magar malul nahin

ग़ज़ल

है दाग़ दाग़ मिरा दिल मगर मलूल नहीं

फ़रीद इशरती

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है दाग़ दाग़ मिरा दिल मगर मलूल नहीं
तमाम उम्र का रोना मुझे क़ुबूल नहीं

वो गुफ़्तुगू जो निगाहों से होती रहती है
हदीस-ए-नर्गिस-ए-मस्ताना है फ़ुज़ूल नहीं

बहुत से फूल हैं दामन में आप के लेकिन
जिसे हम अपना कहें ऐसा कोई फूल नहीं

वो एक बुत जिसे कहते हैं शाहकार-ए-जमील
सनम-कदे का ख़ुदा है मगर रसूल नहीं

सुराग़-ए-जादा-ए-मंज़िल जो दे गया है 'फ़रीद'
हिना का रंग है वो रास्ते की धूल नहीं