है दाग़ दाग़ मिरा दिल मगर मलूल नहीं
तमाम उम्र का रोना मुझे क़ुबूल नहीं
वो गुफ़्तुगू जो निगाहों से होती रहती है
हदीस-ए-नर्गिस-ए-मस्ताना है फ़ुज़ूल नहीं
बहुत से फूल हैं दामन में आप के लेकिन
जिसे हम अपना कहें ऐसा कोई फूल नहीं
वो एक बुत जिसे कहते हैं शाहकार-ए-जमील
सनम-कदे का ख़ुदा है मगर रसूल नहीं
सुराग़-ए-जादा-ए-मंज़िल जो दे गया है 'फ़रीद'
हिना का रंग है वो रास्ते की धूल नहीं
ग़ज़ल
है दाग़ दाग़ मिरा दिल मगर मलूल नहीं
फ़रीद इशरती