है बरहम फिर मिज़ाज उन का दिल-ए-नाकाम क्या होगा
यही सूरत रही तो इश्क़ का अंजाम क्या होगा
ख़लिश दिल में जिगर में दर्द लब पर मोहर-ए-ख़ामोशी
ये सूरत है तो फिर मुझ को भला आराम क्या होगा
ये बज़्म-ए-नाज़ है ऐ दिल यहाँ बेहतर है ख़ामोशी
सुना कर उन को अपना क़िस्सा-ए-आलाम क्या होगा
यही है ज़ोहद का आलम तो फिर ऐ हज़रत-ए-नासेह
शराब-ए-हौज़-ए-कौसर का छलकता जाम क्या होगा
अभी से आँख में आँसू हैं लब पर आह दिल में दर्द
ये आग़ाज़-ए-मोहब्बत है तो फिर अंजाम क्या होगा
ख़ुदारा ये भी सोचो ऐ चमन के छोड़ने वालो
हैं जो सहन-ए-चमन में इन का अब अंजाम क्या होगा
कोई बदनाम हो जाए तो इस को भी बहुत समझो
है ये दूरी ख़ुदी इस में किसी का नाम क्या होगा
अभी तो शब है आओ प्यार की बातें करें हम तुम
अभी से क्यूँ ये सोचें सुब्ह का पैग़ाम क्या होगा
जिधर देखो उधर ज़ुल्मत नज़र आती है ऐ 'कशफ़ी'
सहर का रंग है जब ये तो रंग-ए-शाम क्या होगा

ग़ज़ल
है बरहम फिर मिज़ाज उन का दिल-ए-नाकाम क्या होगा
कशफ़ी लखनवी