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है अँखड़ियों में नींद तो इक काम कीजिए | शाही शायरी
hai ankhDiyon mein nind to ek kaam kijiye

ग़ज़ल

है अँखड़ियों में नींद तो इक काम कीजिए

मिर्ज़ा हुसैन अली मेहनत

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है अँखड़ियों में नींद तो इक काम कीजिए
ये भी तो घर है आप का आराम कीजिए

ये ज़ोफ़ है कि पहुँचे है ता-सुब्ह रुख़ तलक
गर ज़ुल्फ़ पर निगाह सर-ए-शाम कीजिए

कल मैं जो ये कहा कि किसी के अलम से आह
मर जाइए बस और न कुछ काम कीजिए

तो वो सुना के मुझ को ये कहता है एक से
क्या लुत्फ़ है किसी को जो बदनाम कीजिए

इस ज़िंदगी से खींचिए 'मेहनत' गर अपना हाथ
फैला के पाँव ज़ौक़ से आराम कीजिए