है आफ़्ताब और मिरे दिल का दाग़ एक
देखा तो बज़्म-ए-इश्क़ में है ये चराग़ एक
वहदत ही से ज़ुहूर है कसरत का देख ले
हैं फूल सौ तरह के व-लेकिन है बाग़ एक
जिस दिन से वो ख़याल में तेरी कमर के है
अन्क़ा का और दिल का मिरे है सुराग़ एक
इंसाफ़ से बईद है साक़ी-ए-रोज़गार
औरों को जाम सैकड़ों मुझ को अयाग़ एक
लाएँ कहाँ से तेरी सी फ़िक्र-ए-बुलंद हम
'जोशिश' नहीं हर एक का दिल और दिमाग़ एक
ग़ज़ल
है आफ़्ताब और मिरे दिल का दाग़ एक
जोशिश अज़ीमाबादी