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है आफ़्ताब और मिरे दिल का दाग़ एक | शाही शायरी
hai aaftab aur mere dil ka dagh ek

ग़ज़ल

है आफ़्ताब और मिरे दिल का दाग़ एक

जोशिश अज़ीमाबादी

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है आफ़्ताब और मिरे दिल का दाग़ एक
देखा तो बज़्म-ए-इश्क़ में है ये चराग़ एक

वहदत ही से ज़ुहूर है कसरत का देख ले
हैं फूल सौ तरह के व-लेकिन है बाग़ एक

जिस दिन से वो ख़याल में तेरी कमर के है
अन्क़ा का और दिल का मिरे है सुराग़ एक

इंसाफ़ से बईद है साक़ी-ए-रोज़गार
औरों को जाम सैकड़ों मुझ को अयाग़ एक

लाएँ कहाँ से तेरी सी फ़िक्र-ए-बुलंद हम
'जोशिश' नहीं हर एक का दिल और दिमाग़ एक