हफ़्त अफ़्लाक से आगे कहीं कुछ हो तो कहूँ
हद-ए-इदराक से आगे कहीं कुछ हो तो कहूँ
मैं ने जिस ज़ात को लब्बैक कहा है उस के
जल्वा-ए-पाक से आगे कहीं कुछ हो तो कहूँ
जिस पे पैवंद ही पैवंद नज़र आते थे
ऐसी पोशाक से आगे कहीं कुछ हो तो कहूँ
मुझ से पूछे कोई इंसान कहाँ तक पहुँचा
अज़्म-ए-बेबाक से आगे कहीं कुछ हो तो कहूँ
हाँ मिरी ज़ीस्त का हासिल ग़म-ए-दौराँ तो नहीं
चश्म-ए-नमनाक से आगे कहीं कुछ हो तो कहूँ
जिस तरफ़ देखिए वीरानी ही वीरानी है
ख़स-ओ-ख़ाशाक से आगे कहीं कुछ हो तो कहूँ
हर तरफ़ हम-वतनों ख़ून-ख़राबे के सिवा
चश्म-ए-सफ़्फ़ाक से आगे कहीं कुछ हो तो कहूँ
आलम-ए-ख़ाक मिरी ज़ात का हर ज़र्रा है
आलम-ए-ख़ाक से आगे कहीं कुछ हो तो कहूँ
मेरे अफ़्लाक से आगे तो फ़क़त हूँ मैं ही
मेरे अफ़्लाक से आगे कहीं कुछ हो तो कहूँ
जाँ का है अपनी जगह एक तसव्वुर 'रूमी'
जसद-ए-ख़ाक से आगे कहीं कुछ हो तो कहूँ
ग़ज़ल
हफ़्त अफ़्लाक से आगे कहीं कुछ हो तो कहूँ
रूमाना रूमी