EN اردو
हदीस-ए-तल्ख़ी-ए-अय्याम से तकलीफ़ होती है | शाही शायरी
hadis-e-talKHi-e-ayyam se taklif hoti hai

ग़ज़ल

हदीस-ए-तल्ख़ी-ए-अय्याम से तकलीफ़ होती है

हफ़ीज़ बनारसी

;

हदीस-ए-तल्ख़ी-ए-अय्याम से तकलीफ़ होती है
सहर वालों को ज़िक्र-ए-शाम से तकलीफ़ होती है

वही काफ़िर कि जिस का नाम तस्कीन-दिल-ओ-जाँ था
सितम है अब उसी के नाम से तकलीफ़ होती है

मक़ाम ऐसा भी आता है गुज़रगाह-ए-मोहब्बत में
मुसाफ़िर को जहाँ आराम से तकलीफ़ होती है

शिकस्त-ए-दिल की मंज़िल से अगर गुज़रे तो क्या होगा
अभी तुम को शिकस्त-ए-जाम से तकलीफ़ होती है

'हफ़ीज़' अहल-ए-गुलिस्ताँ से हमारा हाल मत कहना
उन्हें ज़िक्र-ए-असीर-ए-दाम से तकलीफ़ होती है