हदीस-ए-दिल बयाँ करने में कितनी देर लगती है
किसी को राज़दाँ करने में कितनी देर लगती है
कोई है जिस के दिल में आज तक हम घर न कर पाए
किसी को मेहरबाँ करने में कितनी देर लगती है
वो जादूगर की सूरत झूट को सच कर दिखाते हैं
किसी को बद-गुमाँ करने में कितनी देर लगती है
कोई तो कश्मकश है दिल में शायद हश्र है बरपा
दुल्हन को वर्ना हाँ करने में कितनी देर लगती है
किसी बेवा के दिल से ये हक़ीक़त पूछिए जा कर
कि बच्चों को जवाँ करने में कितनी देर लगती है
बुलंदी खा गई मेरी जवानी तुम ये कहते हो
ज़मीं को आसमाँ करने में कितनी देर लगती
अगर ये दिल सितमगर को सितमगर मान ले 'तालिब'
तो दिल को हम-ज़बाँ करने में कितनी देर लगती है
ग़ज़ल
हदीस-ए-दिल बयाँ करने में कितनी देर लगती है
अयाज़ अहमद तालिब