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हद्द-ए-निगाह शाम का मंज़र धुआँ धुआँ | शाही शायरी
hadd-e-nigah sham ka manzar dhuan dhuan

ग़ज़ल

हद्द-ए-निगाह शाम का मंज़र धुआँ धुआँ

इक़बाल अंजुम

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हद्द-ए-निगाह शाम का मंज़र धुआँ धुआँ
छाने लगा है ज़ेहन के अंदर धुआँ धुआँ

गिरती हुई फुवार बनाती हुई धनक
कुछ देर बा'द रह गई हो कर धुआँ धुआँ

लहरों से खेलता हुआ किरनों का इक हुजूम
उठता हुआ सा दूर उफ़ुक़ पर धुआँ धुआँ

उड़ते हुए परिंद ख़लाओं में गुम हुए
फिर रह गया निगाह में जम कर धुआँ धुआँ

कानों में कश्तियों की सदा गूँजने लगी
फिर सामने है एक समुंदर धुआँ धुआँ