हद हो कोई तो सब्र तिरे हिज्र पर करें
आख़िर हम एक हाल में कब तक बसर करें
अहल-ए-नज़र वसीअ गर अपनी नज़र करें
ज़र्रे नक़ाब उलट के तुझे जल्वा-गर करें
फ़ितरत हर ए'तिबार से है हम-नवा-ए-हुस्न
आमीन तुम को तो दुआएँ असर करें
तुम ने तो अपने हुस्न को महफ़ूज़ कर लिया
हम किस के साथ उम्र-ए-मोहब्बत बसर करें
'सीमाब' हम में ऐब ओ हुनर ख़ुद हैं बे-हिसाब
हम क्या कसी के ऐब ओ हुनर पर नज़र करें
ग़ज़ल
हद हो कोई तो सब्र तिरे हिज्र पर करें
सीमाब अकबराबादी