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हद हो कोई तो सब्र तिरे हिज्र पर करें | शाही शायरी
had ho koi to sabr tere hijr par karen

ग़ज़ल

हद हो कोई तो सब्र तिरे हिज्र पर करें

सीमाब अकबराबादी

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हद हो कोई तो सब्र तिरे हिज्र पर करें
आख़िर हम एक हाल में कब तक बसर करें

अहल-ए-नज़र वसीअ गर अपनी नज़र करें
ज़र्रे नक़ाब उलट के तुझे जल्वा-गर करें

फ़ितरत हर ए'तिबार से है हम-नवा-ए-हुस्न
आमीन तुम को तो दुआएँ असर करें

तुम ने तो अपने हुस्न को महफ़ूज़ कर लिया
हम किस के साथ उम्र-ए-मोहब्बत बसर करें

'सीमाब' हम में ऐब ओ हुनर ख़ुद हैं बे-हिसाब
हम क्या कसी के ऐब ओ हुनर पर नज़र करें