हब्स तारी है मुसलसल कैसा
अब के बरसा है ये बादल कैसा
जिस से एहसास की सदियाँ गुज़रीं
था जुदाई का वो इक पल कैसा
ले के नज़राना-ए-जाँ कौन आया
जश्न सा है सर-ए-मक़्तल कैसा
तेरी तौसीफ़ से ख़ाली हो अगर
लफ़्ज़ हो जाता है मोहमल कैसा
वही दिन रात मोहब्बत का जुनूँ
दिल भी कम-बख़्त है पागल कैसा
उस ने तो लब अभी खोले भी नहीं
शोर-ए-नग़्मा है मुसलसल कैसा
उन के आने की ख़बर से 'शाइर'
दिल हुआ जाता है बोझल कैसा

ग़ज़ल
हब्स तारी है मुसलसल कैसा
शायर लखनवी