हब्स तअल्लुक़ात में दूर न जा इधर उधर
ग़ैर हवा नहीं कि बस चूम लिया इधर उधर
देख रही है किश्त-ए-दिल अश्कों की बेवफ़ाइयाँ
अब के बरस बरस गई सारी घटा इधर उधर
जान मिरी शिकस्त से शोर तिरा है हर तरफ़
साथ मिरे बिखर गई मेरी नवा इधर उधर
दिल को मिरे तिरा ये शौक़ तुझ से भी था अज़ीज़-तर
तेरी गली के आस-पास मैं जो रहा इधर उधर
देखिए कब कहाँ कोई कैसे इसे उछाल दे
सिक्का-ए-वक़्त पर हैं नक़्श शाह-ओ-गदा इधर उधर
राह में रुक के किस लिए पूछें किसी से रास्ता
ख़्वाब का ये सफ़र है और ख़्वाब में किया इधर उधर
होश जो था सो एक उम्र मुझ को कहीं न ले गया
कम तो नहीं कि ले गया उस का नशा इधर उधर
ग़ज़ल
हब्स तअल्लुक़ात में दूर न जा इधर उधर
मोहम्मद अाज़म