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हाथों से मेरे छीन कर दिल का मआल ले गई | शाही शायरी
hathon se mere chhin kar dil ka maal le gai

ग़ज़ल

हाथों से मेरे छीन कर दिल का मआल ले गई

अलीम अफ़सर

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हाथों से मेरे छीन कर दिल का मआल ले गई
जाने कहाँ कहाँ मुझे गर्दिश-ए-हाल ले गई

काम न कोई आ सका लेकिन ये आँख की नमी
सिलसिला-ए-ग़ुबार से मुझ को निकाल ले गई

मौज-ए-हवस के दोश पर कोह-ए-सियाह तक गया
मुझ को हवा-ए-शौक़ फिर ता-बा-ज़वाल ले गई

उँगलियाँ तोड़े कोई कर ले ज़बान संग की
देखिए सब्क़त-ए-शरफ़ सौत-ए-बिलाल ले गई

तेज़ हवा उड़ा चले जिस तरह बर्ग-ए-ज़र्द को
उस की हँसी भी अपने साथ मेरा सवाल ले गई

सामने बहर-ए-बे-कराँ क़ैदी यक जज़ीरा में
फिर भी मैं उस से जा मिला मौज-ए-ख़याल ले गई