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हाथों को कश्कोल बनाए बैठे हैं | शाही शायरी
hathon ko kashkol banae baiThe hain

ग़ज़ल

हाथों को कश्कोल बनाए बैठे हैं

नदीम फर्रुख

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हाथों को कश्कोल बनाए बैठे हैं
भूके बच्चे ग़ोल बनाए बैठे हैं

आप हसीं प्याले से धोका मत खाना
वो ज़हरीला घोल बनाए बैठे हैं

वो शो'लों की बारिश करने वाला है
हम काग़ज़ के ख़ोल बनाए बैठे हैं

उस की कोशिश बिकने पर मजबूर हों हम
हम ख़ुद को अनमोल बनाए बैठे हैं

दुश्मन आख़िर दस्तारों तक आ पहुँचा
हम रिश्तों में झोल बनाए बैठे हैं