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हाथ पर हाथ रख के क्यूँ बैठूँ | शाही शायरी
hath par hath rakh ke kyun baiThun

ग़ज़ल

हाथ पर हाथ रख के क्यूँ बैठूँ

विकास शर्मा राज़

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हाथ पर हाथ रख के क्यूँ बैठूँ
धूप आएगी कोई साया बुनूँ

पाँव ज़ंजीर चाहते हैं अब
जितनी जल्दी हो अपने घर लौटूँ

हाँ ये रुत साज़गार है मुझ को
मैं इसी रुत में ख़ुश्क हो जाऊँ

एक नश्शा है ये उदासी भी
और मैं इस नशे का आदी हूँ

उस ने शादी का कार्ड भेजा है
सोचता हूँ ये इम्तिहाँ दे दूँ