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हाथ में ख़ंजर आ सकता है | शाही शायरी
hath mein KHanjar aa sakta hai

ग़ज़ल

हाथ में ख़ंजर आ सकता है

रसा चुग़ताई

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हाथ में ख़ंजर आ सकता है
या फिर साग़र आ सकता है

आँखें ज़ख़्मी हो सकती हैं
ज़र्रा उड़ कर आ सकता है

छत के ऊपर सोने वाले
सूरज सर पर आ सकता है

ख़्वाब में आने वाला इक दिन
ख़्वाब से बाहर आ सकता है

काला जादू करने वाला
मशअल ले कर आ सकता है

सारे मंज़र छुप सकते हैं
ऐसा मंज़र आ सकता है

शायद कोई आने वाला
लम्हा बेहतर आ सकता है

घर का रस्ता भूलने वाला
चौराहे पर आ सकता है

मिट्टी हिजरत कर सकती है
दरिया चल कर आ सकता है