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हासिल कभी जो उस की मोहब्बत न हो हमें | शाही शायरी
hasil kabhi jo uski mohabbat na ho hamein

ग़ज़ल

हासिल कभी जो उस की मोहब्बत न हो हमें

अतहर शकील

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हासिल कभी जो उस की मोहब्बत न हो हमें
पल-भर की भी हयात में राहत न हो हमें

शिकवे जो तुम से हैं वो तवक़्क़ो के साथ हैं
उम्मीद गर न हो तो शिकायत न हो हमें

जज़्बातियत में तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ तो कर चुके
कल अपने फ़ैसले पे नदामत न हो हमें

ये और बात है कि लबों से नहीं अयाँ
ये तो नहीं कि तुम से मोहब्बत न हो हमें

ने'मत की तरह दिल पे लगे हैं तुम्हारे ज़ख़्म
काफ़िर कहो जो टीस में राहत न हो हमें

कहते नहीं ज़बान से 'अतहर-शकील' हम
ये तो नहीं कि ग़म से अज़िय्यत न हो हमें