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हाँफती नद्दी में दम टूटा हुआ था लहर का | शाही शायरी
hanpti naddi mein dam TuTa hua tha lahr ka

ग़ज़ल

हाँफती नद्दी में दम टूटा हुआ था लहर का

आफ़ताब इक़बाल शमीम

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हाँफती नद्दी में दम टूटा हुआ था लहर का
वाक़िआ है ये सितंबर की किसी सह-पहर का

सरसराहट रेंगते लम्हे की सरकण्डों में थी
था नशा सारी फ़ज़ा में नागिनों के ज़हर का

थी सदफ़ में रौशनी की बूँद थर्राई हुई
जिस्म के अंदर कहीं धड़का लगा था क़हर का

दिल में थीं ऐसे फ़साद-आमादा दिल की धड़कनें
हो भरा बलवाइयों से चौक जैसे शहर का

आसमाँ उतरा किनारों को मिलाने के लिए
ये भी फिर देखा कि पल टूटा हुआ था नहर का

ऐश-ए-बे-मीआ'द मिलती पर कहाँ मिलती तुझे
मेरी मिट्टी की महक में शाइबा है दहर का