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हाँ वफ़ाओं का मेरी ध्यान भी था | शाही शायरी
han wafaon ka meri dhyan bhi tha

ग़ज़ल

हाँ वफ़ाओं का मेरी ध्यान भी था

विकास शर्मा राज़

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हाँ वफ़ाओं का मेरी ध्यान भी था
ज़ेहन में उस के ख़ानदान भी था

धूप के ही नसीब में था मैं
मुंतज़िर मेरा साएबान भी था

तैरना भी न जानता था वो
डूबने वाला बे-ज़बान भी था

कुछ तो बारिश ने बाँध ली थी ज़िद
कुछ पुराना मिरा मकान भी था

वक़्त भी कम मिला था कुछ हम को
और कुछ सख़्त इम्तिहान भी था