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हाँ दीद का इक़रार अगर हो तो अभी हो | शाही शायरी
han did ka iqrar agar ho to abhi ho

ग़ज़ल

हाँ दीद का इक़रार अगर हो तो अभी हो

आरज़ू लखनवी

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हाँ दीद का इक़रार अगर हो तो अभी हो
और यूँ हो कि दीदार अगर हो तो अभी हो

तक़दीर से डरता हूँ कि फिर मत न पलट जाए
तुम दिल के ख़रीदार अगर हो तो अभी हो

दीदार को कल कह के क़यामत पे वो टालें
और शौक़ का इसरार अगर हो तो अभी हो

बदला हुआ हर अहद नया लाता है पैग़ाम
ये क्या कि हर इक़रार अगर हो तो अभी हो

आ लेने तो दो 'आरज़ू' आज़ार में लज़्ज़त
तुम नाम से बेज़ार अगर हो तो अभी हो