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हाँ धनक के रंग सारे खुल गए | शाही शायरी
han dhanak ke rang sare khul gae

ग़ज़ल

हाँ धनक के रंग सारे खुल गए

स्वप्निल तिवारी

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हाँ धनक के रंग सारे खुल गए
मुझ पे तेरे सब इशारे खुल गए

एक तो हम खेल में भी थे नए
उस पे पत्ते भी हमारे खुल गए

झील में आँखों की तुम उतरे ही थे
और ख़्वाबों के शिकारे खुल गए

नर्म ही थी याद की हर पंखुड़ी
फिर भी मेरे ज़ख़्म सारे खुल गए

मुझ को जकड़े थे कई बंधन मगर
तेरे बंधन के सहारे खुल गए

सुल्ह आख़िर हो गई झगड़ा मिटा
भेद तो लेकिन हमारे खुल गए