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हालात मिरी राह में हाइल तो नहीं थे | शाही शायरी
haalat meri rah mein hail to nahin the

ग़ज़ल

हालात मिरी राह में हाइल तो नहीं थे

अर्श सहबाई

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हालात मिरी राह में हाइल तो नहीं थे
इस ज़िंदगी में इतने मसाइल तो नहीं थे

ये आज अचानक हुई क्यूँ हम पे तवज्जोह
वो लुत्फ़-ओ-करम पे कभी माइल तो नहीं थे

इक दूसरे से दूर निकल आए हैं हम लोग
हम भी कभी ये फ़ासले हाइल तो नहीं थे

तू ने हमें शायद ग़लत अंदाज़ से सोचा
हम तेरे तमन्नाई थे साइल तो नहीं थे

अब मो'तक़िद-ए-गर्दिश-ए-हालात हैं वर्ना
हम गर्दिश-ए-हालात के क़ाइल तो नहीं थे

चेहरे पे मसर्रत की झलक ख़ूब थी लेकिन
आसार ग़म-ओ-दर्द के ज़ाइल तो नहीं थे

इक कुश्ता-ए-हालात की कुछ आस बंधाईं
लोगों में मगर ऐसे ख़साइल तो नहीं थे

जिन कोहना रूसूमात में हम जकड़े हुए हैं
उन कोहना रूसूमात के क़ाइल तो नहीं थे

जीना बड़ा मुश्किल था मगर फिर भी जिए 'अर्श'
जीने के लिए इतने वसाएल तो नहीं थे