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हालात अब तो इतने दुश्वार हो गए हैं | शाही शायरी
haalat ab to itne dushwar ho gae hain

ग़ज़ल

हालात अब तो इतने दुश्वार हो गए हैं

नज़ीर सिद्दीक़ी

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हालात अब तो इतने दुश्वार हो गए हैं
हम नीम-शब में अक्सर बेदार हो गए हैं

जो लोग सादा-दिल थे पुरकार हो गए हैं
अब आदमी के रिश्ते दुश्वार हो गए हैं

ये ज़िंदगी की ने'मत किस को नहीं है प्यारी
मत पूछ इस से हम क्यूँ बेज़ार हो गए हैं

उसरत में जिन का शेवा कल तक था ख़ुद-फ़रोशी
दौलत के मिलते ही वो ख़ुद्दार हो गए हैं

दुश्मन को हो गया है अंदाज़ा कुछ हमारा
दुश्मन से हम भी लेकिन होश्यार हो गए हैं

मातम नहीं मुनासिब अब जान के जहाँ का
दश्त-ए-तलब के रस्ते हमवार हो गए हैं