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हाल न पूछो रोज़-ओ-शब का कोई अनोखी बात नहीं | शाही शायरी
haal na puchho roz-o-shab ka koi anokhi baat nahin

ग़ज़ल

हाल न पूछो रोज़-ओ-शब का कोई अनोखी बात नहीं

मुमताज़ मीरज़ा

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हाल न पूछो रोज़-ओ-शब का कोई अनोखी बात नहीं
दिन को कैसे रात कहें हम रात भी अब तो रात नहीं

लगने को तो सेहन-ए-चमन में दोनों अच्छे लगते हैं
काँटों में जो अपना-पन है फूलों में वो बात नहीं

दिल से भुला तो दें हम उन को लेकिन इस को क्या कीजे
सदियों की रूदाद भुलाना अपने बस की बात नहीं

गुलशन गुलशन शाख़ ओ शजर पर रोज़ नशेमन जलते हैं
किस ने कहा था मौसम बदला अगले से हालात नहीं

एक ज़रा सी बात पे क्यूँ है इतना हंगामा 'मुमताज़'
शीशा-ए-दिल ही तो टूटा है और तो कोई बात नहीं