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हाल-ए-दिल तुम से मिरी जाँ न कहा कौन से दिन | शाही शायरी
haal-e-dil tum se meri jaan na kaha kaun se din

ग़ज़ल

हाल-ए-दिल तुम से मिरी जाँ न कहा कौन से दिन

निज़ाम रामपुरी

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हाल-ए-दिल तुम से मिरी जाँ न कहा कौन से दिन
मेरे कहने को भला तुम ने सुना कौन से दिन

लज़्ज़तें वस्ल की कुछ मैं ने बयाँ कीं तो कहा
आप के वास्ते दिन ऐसा हुआ कौन से दिन

जब कहा मैं ने वो क्या दिन थे जो मिलते थे तुम
हो के अंजान अजब ढब से कहा कौन से दिन

वस्ल की शब है मिलो आज तो दिल खोल के ख़ूब
ऐ मिरी जान ये जाएगी हया कौन से दिन

रशक-आमेज़ जो कुछ मैं ने कहा तो बोले
ग़ैर के साथ मुझे देख लिया कौन से दिन

हर घड़ी दिल में रहा ख़ौफ़ बिगड़ जाने का
तेरे मिलने में मज़ा हम को मिला कौन से दिन

कौन सा दिन है जो बेचैन नहीं हो के 'निज़ाम'
बे-क़रारी से न उस दर पे गया कौन से दिन