हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता
लफ़्ज़ मा'ना को पा नहीं सकता
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
होश आरिफ़ की है यही पहचान
कि ख़ुदी में समा नहीं सकता
पोंछ सकता है हम-नशीं आँसू
दाग़-ए-दिल को मिटा नहीं सकता
मुझ को हैरत है उस की क़ुदरत पर
अलम उस को घटा नहीं सकता
ग़ज़ल
हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता
अकबर इलाहाबादी