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हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता | शाही शायरी
haal-e-dil main suna nahin sakta

ग़ज़ल

हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता

अकबर इलाहाबादी

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हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता
लफ़्ज़ मा'ना को पा नहीं सकता

इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता

होश आरिफ़ की है यही पहचान
कि ख़ुदी में समा नहीं सकता

पोंछ सकता है हम-नशीं आँसू
दाग़-ए-दिल को मिटा नहीं सकता

मुझ को हैरत है उस की क़ुदरत पर
अलम उस को घटा नहीं सकता