हाल-ए-दिल मैं ने जो दुनिया को सुनाना चाहा
मुझ को हर शख़्स ने दिल अपना दिखाना चाहा
अपनी तस्वीर बनाने के लिए दुनिया में
मैं ने हर रंग पे इक रंग चढ़ाना चाहा
ख़ाक-ए-दिल जौहर-ए-आईना के काम आ ही गई
लाख दुनिया ने निगाहों से गिराना चाहा
शो'ला-ए-बर्क़ से गुलशन को बचाने के लिए
मैं ने हर आग को सीने में छुपाना चाहा
अपने ऐबों को छुपाने के लिए दुनिया में
मैं ने हर शख़्स पे इल्ज़ाम लगाना चाहा
ग़ैरत-ए-मौज उसे फेंक गई साहिल पर
डूबने वाले ने जब शोर मचाना चाहा

ग़ज़ल
हाल-ए-दिल मैं ने जो दुनिया को सुनाना चाहा
कर्रार नूरी