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हाल-ए-दिल अपना लिखूँ हाल तुम्हारा लिक्खूँ | शाही शायरी
haal-e-dil apna likhun haal tumhaara likkhun

ग़ज़ल

हाल-ए-दिल अपना लिखूँ हाल तुम्हारा लिक्खूँ

मोहम्मद फ़ैज़ुल्लाह फ़ैज़

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हाल-ए-दिल अपना लिखूँ हाल तुम्हारा लिक्खूँ
तू ही बतला कि तिरे ख़त में मैं क्या क्या लिक्खूँ

उन को अपनाने की सब कोशिशें नाकाम हुईं
बाज़ी-ए-इश्क़ में अब अपने को हारा लिक्खूँ

जिस में तस्वीर नज़र आती थी हर वक़्त तिरी
आइना टूट गया अब वो तुम्हारा लिक्खूँ

गर गरेबाँ ही सलामत है न दामन उस का
कैसी हालत में है दीवाना तुम्हारा लिक्खूँ

'फ़ैज़' हालात हैं जो कुछ भी करम है उस का
क्यूँ न हर हाल को एहसान तुम्हारा लिक्खूँ