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हाल अब तंग है ज़माने का | शाही शायरी
haal ab tang hai zamane ka

ग़ज़ल

हाल अब तंग है ज़माने का

जोशिश अज़ीमाबादी

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हाल अब तंग है ज़माने का
रंग बे-रंग है ज़माने का

नहीं कोताह उस का दस्त-ए-तलब
ये गदा नंग है ज़माने का

एक दम चैन से न कोई रहे
यही आहंग है ज़माने का

सरकशों का रहा न नाम-ओ-निशाँ
ज़ोर-ए-सर चंग है ज़माने का

ऐ जफ़ा-कार दहर में तुझ बिन
कौन हम-संग है ज़माने का

झूट मैं ने कहा तिरे हाथों
क़ाफ़िया तंग है ज़माने का

चल निकल जल्द याँ से ऐ 'जोशिश'
ढंग बे-ढंग है ज़माने का