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हाए वो याद कहाँ है कि ख़ुदा ख़ैर करे | शाही शायरी
hae wo yaad kahan hai ki KHuda KHair kare

ग़ज़ल

हाए वो याद कहाँ है कि ख़ुदा ख़ैर करे

सुनील कुमार जश्न

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हाए वो याद कहाँ है कि ख़ुदा ख़ैर करे
दिल में फिर अम्न-ओ-अमाँ है कि ख़ुदा ख़ैर करे

इक ख़ुदा है जो महज़ गुफ़्तुगू में है मौजूद
और उसी से ये गुमाँ है कि ख़ुदा ख़ैर करे

मुझ में इक दश्त सा क़ाएम है मगर चारों तरफ़
शहर का शहर रवाँ है कि ख़ुदा ख़ैर करे

जो ज़माने से छुपानी थी मुझे हर वो बात
शेर-दर-शेर बयाँ है कि ख़ुदा ख़ैर करे