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हाए उस बे-ख़ुद-ए-शबाब का रंग | शाही शायरी
hae us be-KHud-e-shabab ka rang

ग़ज़ल

हाए उस बे-ख़ुद-ए-शबाब का रंग

सफ़ी औरंगाबादी

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हाए उस बे-ख़ुद-ए-शबाब का रंग
लाल अँगारा सा शराब का रंग

हो गया ख़ून हसरत-ए-दीदार
दे दिया अश्क ने शहाब का रंग

उस की ख़ुश-बू गुलाब की ख़ुश-बू
रंग उस शोख़ का गुलाब का रंग

सत्या-नास हो गया दिल का
क्या कहूँ उस जले कबाब का रंग

बिजलियाँ दुश्मनों पे गिरती हैं
देख कर मेरे इज़्तिराब का रंग

वो सर-ए-शाम सैर को निकले
पड़ गया ज़र्द आफ़्ताब का रंग

उस के रुख़ पर निखर गई सुर्ख़ी
अल्लाह अल्लाह उस हिजाब का रंग

माँद है रात-दिन तिरे आगे
माहताब और आफ़्ताब का रंग

इतनी शोख़ी 'सफ़ी' किसी में कहाँ
रंग में रंग तो शराब का रंग