हादसे ज़ेर-ओ-बम पेच-ओ-ख़म राह देख
गाह चल गाह रुक गाह मुड़ गाह देख
तूल-ए-फ़िहरिस्त-ए-हाजात कुछ रहम कर
मेरी मुश्किल समझ मेरी तनख़्वाह देख
बुज़दिलों की तरह छुप के हमला न कर
अपने दुश्मन को भी कर के आगाह देख
जिस को आना न हो वो नहीं आएगा
एक दो दिन नहीं चार छे माह देख
अपनी औक़ात का जाएज़ा ले ज़रा
उस की ज़ेबाइश-ओ-मंसब-ओ-जाह देख
कुछ तमीज़ उयूब-ओ-महासिन नहीं
है नज़र तेरी किस दर्जा कोताह देख
ग़ज़ल
हादसे ज़ेर-ओ-बम पेच-ओ-ख़म राह देख
अशफ़ाक़ रहबर