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हादसे ज़ेर-ओ-बम पेच-ओ-ख़म राह देख | शाही शायरी
hadse zer-o-bam pech-o-KHam rah dekh

ग़ज़ल

हादसे ज़ेर-ओ-बम पेच-ओ-ख़म राह देख

अशफ़ाक़ रहबर

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हादसे ज़ेर-ओ-बम पेच-ओ-ख़म राह देख
गाह चल गाह रुक गाह मुड़ गाह देख

तूल-ए-फ़िहरिस्त-ए-हाजात कुछ रहम कर
मेरी मुश्किल समझ मेरी तनख़्वाह देख

बुज़दिलों की तरह छुप के हमला न कर
अपने दुश्मन को भी कर के आगाह देख

जिस को आना न हो वो नहीं आएगा
एक दो दिन नहीं चार छे माह देख

अपनी औक़ात का जाएज़ा ले ज़रा
उस की ज़ेबाइश-ओ-मंसब-ओ-जाह देख

कुछ तमीज़ उयूब-ओ-महासिन नहीं
है नज़र तेरी किस दर्जा कोताह देख