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हादसात अब के सफ़र में नए ढब से आए | शाही शायरी
hadsat ab ke safar mein nae Dhab se aae

ग़ज़ल

हादसात अब के सफ़र में नए ढब से आए

बकुल देव

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हादसात अब के सफ़र में नए ढब से आए
कश्तियाँ भी नहीं डूबी न किनारे आए

बअ'द मुद्दत ये जिला किस के हुनर ने बख़्शी
बअ'द मुद्दत मिरे आईने में चेहरे आए

अश्क पलकों की मुंडेरों पे तमन्ना दिल में
दिन ढले लौट के शाख़ों पे परिंदे आए

सारे किरदारों से जी खोल के बातें कर लूँ
मोड़ कैसा मिरे क़िस्से में न जाने आए

अर्श पर रोज़ बगूले से फिरा करते हैं
दश्त की ख़ाक को दीवाने कहाँ ले आए

मैं किसी और तक़ाज़े से करूँ ज़िक्र उस का
वो किसी और से मिलने के बहाने आए