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हादसा होता रहा है मुझ में | शाही शायरी
hadsa hota raha hai mujh mein

ग़ज़ल

हादसा होता रहा है मुझ में

बलवान सिंह आज़र

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हादसा होता रहा है मुझ में
बार-हा कोई मरा है मुझ में

मेरी मिट्टी को पता है सब कुछ
कौन कब कितना चला है मुझ में

ख़त्म होता ही नहीं मेरा सफ़र
कोई थक-हार गया है मुझ में

अपने अंदर मैं समेटूँ क्या क्या
सारा घर बिखरा पड़ा है मुझ में

कश्तियाँ डूब रही हैं 'आज़र'
एक तूफ़ान उठा है मुझ में