गुज़रो न इस तरह कि तमाशा नहीं हूँ मैं 
समझो कि अब हूँ और दोबारा नहीं हूँ मैं 
इक तब्अ' रंग रंग थी सो नज़्र-ए-गुल हुई 
अब ये कि अपने साथ भी रहता नहीं हूँ मैं 
तुम ने भी मेरे साथ उठाए हैं दुख बहुत 
ख़ुश हूँ कि राह-ए-शौक़ में तन्हा नहीं हूँ मैं 
पीछे न भाग वक़्त की ऐ ना-शनास धूप 
सायों के दरमियान हूँ साया नहीं हूँ मैं 
जो कुछ भी हूँ मैं अपनी ही सूरत में हूँ 'अलीम' 
'ग़ालिब' नहीं हूँ 'मीर'-ओ-'यगाना' नहीं हूँ मैं
        ग़ज़ल
गुज़रो न इस तरह कि तमाशा नहीं हूँ मैं
उबैदुल्लाह अलीम

