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गुज़रते दिन के दुखों का पता तो देता था | शाही शायरी
guzarte din ke dukhon ka pata to deta tha

ग़ज़ल

गुज़रते दिन के दुखों का पता तो देता था

अरमान नज्मी

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गुज़रते दिन के दुखों का पता तो देता था
वो शाम ढलने से पहले सदा तो देता था

हुजूम-ए-कार में पल भर भी इक बहाने से
वो अपने क़ुर्ब का जादू जगा तो देता था

शरीक-ए-राह था वो हम-सफ़र न था फिर भी
क़दम क़दम पे मुझे हौसला तो देता था

मुझी को मिलती न थी फ़ुर्सत-ए-पज़ीराई
वो अपने सच का मुझे आइना तो देता था

वो चाँद और किसी आसमाँ का था लेकिन
उफ़ुक़ उफ़ुक़ को मिरे जगमगा तो देता था

मैं उस की आँच में तप कर न हो सका कुंदन
वो अपने शोला-ए-जाँ की हवा तो देता था