गुज़रना रहगुज़ारों से बड़ा आसान था पहले
इलाक़ा हम जहाँ रहते हैं वो सुनसान था पहले
सबब क्या है उसे खोने का कुछ भी ग़म नहीं होता
जिसे पाने का इस दिल को बड़ा अरमान था पहले
ये आलम है कि अब कुछ भी नहीं इक हू का आलम है
हमारे ख़ाना-ए-दिल में कोई मेहमान था पहले
बशर का शर नुमायाँ हो गया दौर-ए-तरक़्क़ी में
यही वो आदमी है जो कभी इंसान था पहले
अजब ख़ुश्बू सी आती है दर-ओ-दीवार से अब भी
यहाँ कोई यक़ीनन साहिब-ए-ईमान था पहले
वो मेरे वास्ते अब जान देने पर है आमादा
वही 'जावेद' जो मेरा हरीफ़-ए-जान था पहले

ग़ज़ल
गुज़रना रहगुज़ारों से बड़ा आसान था पहले
ख़्वाजा जावेद अख़्तर