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गुज़र गया इंतिज़ार हद से ये वादा-ए-ना-तमाम कब तक | शाही शायरी
guzar gaya intizar had se ye wada-e-na-tamam kab tak

ग़ज़ल

गुज़र गया इंतिज़ार हद से ये वादा-ए-ना-तमाम कब तक

फ़ानी बदायुनी

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गुज़र गया इंतिज़ार हद से ये वादा-ए-ना-तमाम कब तक
न मरने देगी मुझे सितमगर तिरी तमन्ना-ए-ख़ाम कब तक

अजल मिरा इतना काम कर दे कि काम मेरा तमाम कर दे
रहे कोई ज़िंदगी के हाथों जहाँ में रुस्वा-ए-आम कब तक

वो आए या वादे पर न आए बला से क़िस्मत जो कुछ दिखा दे
मगर हमें देखना तो ये है कि आज होती है शाम कब तक

ये बहस ओ तकरार छोड़ दे आ ये ज़ोहद का अहद तोड़ दे
रहेगी ऐ मुद्दई-ए-हुरमत शराब-ए-दुनिया हराम कब तक