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गूँजता है नाला-ए-महताब आधी रात को | शाही शायरी
gunjta hai nala-e-mahtab aadhi raat ko

ग़ज़ल

गूँजता है नाला-ए-महताब आधी रात को

शकेब जलाली

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गूँजता है नाला-ए-महताब आधी रात को
टूट जाते हैं सुहाने ख़्वाब आधी रात को

भागते सायों की चीख़ें टूटते तारों का शोर
मैं हूँ और इक महशर-ए-बे-ख़्वाब आधी रात को

शाम ही से बज़्म-ए-अंजुम नश्शा-ए-ग़फ़लत में थी
चाँद ने भी पी लिया ज़हराब आधी रात को

इक शिकस्ता ख़्वाब की कड़ियाँ मिलाने आए हैं
देर से बिछड़े हुए अहबाब आधी रात को

दौलत-ए-एहसास-ए-ग़म की इतनी अर्ज़ानी हुई
नींद सी शय हो गई नायाब आधी रात को