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ग़ुरूब होते हुए दो सितारे आँखों में | शाही शायरी
ghurub hote hue do sitare aankhon mein

ग़ज़ल

ग़ुरूब होते हुए दो सितारे आँखों में

सफ़दर सिद्दीक़ रज़ी

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ग़ुरूब होते हुए दो सितारे आँखों में
शिकस्त-ए-ख़्वाब के हैं इस्तिआरे आँखों में

फिर उस के बअ'द किसी भी पलक अमाँ न मिली
वो रोज़-ओ-शब कि जो हम ने गुज़ारे आँखों में

हम आख़िर-ए-शब-ए-उम्मीद सो भी जाएँ मगर
वो ख़्वाब-ए-गुम-शुदगाँ कौन उतारे आँखों में

इस एहतिमाम से रोते हैं तेरे दिल-ज़दगाँ
कि बाहर आँखों से दरिया किनारे आँखों में

हम अपने चेहरे पे अपना ही दुख नहीं रखते
सब अहल-ए-हिज्र के हैं गोश्वारे आँखों में

वो कुश्तगान-ए-पस-ओ-पेश अन-कहे अल्फ़ाज़
जो बच गए थे सो वो भी सिधारे आँखों में