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गुनगुनाती हुई आवाज़ कहाँ से लाऊँ | शाही शायरी
gungunati hui aawaz kahan se laun

ग़ज़ल

गुनगुनाती हुई आवाज़ कहाँ से लाऊँ

चरख़ चिन्योटी

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गुनगुनाती हुई आवाज़ कहाँ से लाऊँ
तेरी आवाज़ का अंदाज़ कहाँ से लाऊँ

तेरे अल्ताफ़ से रक़्साँ हैं लबों पर ख़ुशियाँ
ग़म में डूबी हुई आवाज़ कहाँ से लाऊँ

हाल-ए-दिल फूल से चेहरों को सुनाने के लिए
मैं लब-ए-ज़मज़मा-पर्वाज़ कहाँ से लाऊँ

मुझ से हंस हंस के तिरी मश्क़-ए-सितम होती है
तुझ सा मोनिस बुत-ए-तन्नाज़ कहाँ से लाऊँ

शोमी-ए-बख़्त है ये 'चर्ख़' कि वो कहते हैं
मैं मसीहाई का अंदाज़ कहाँ से लाऊँ