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ग़ुंचों के तबस्सुम पर हम ग़ौर नहीं करते | शाही शायरी
ghunchon ke tabassum par hum ghaur nahin karte

ग़ज़ल

ग़ुंचों के तबस्सुम पर हम ग़ौर नहीं करते

नसीम शाहजहाँपुरी

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ग़ुंचों के तबस्सुम पर हम ग़ौर नहीं करते
ख़ामोश तकल्लुम पर हम ग़ौर नहीं करते

डूबे कि रहे कश्ती दरिया-ए-मोहब्बत में
तूफ़ान ओ तलातुम पर हम ग़ौर नहीं करते

कलियों के तबस्सुम की तक़लीद तो करते हैं
अंजाम-ए-तबस्सुम पर हम ग़ौर नहीं करते

उन के रुख़-ए-ताबाँ की देखी है झलक जब से
मेहर ओ मह ओ अंजुम पर हम ग़ौर नहीं करते

ग़म हो कि ख़ुशी दोनों यकसाँ हैं मोहब्बत में
कुछ अश्क ओ तबस्सुम पर हम ग़ौर नहीं करते

जब तक कि मोहब्बत में दिल दिल से नहीं मिलता
नज़रों के तसादुम पर हम ग़ौर नहीं करते

अशआर-नवाज़ी ही शेवा है 'नसीम' अपना
शाइर के तरन्नुम पर हम ग़ौर नहीं करते