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ग़ुंचा-ओ-गुल में ताज़गी न रही | शाही शायरी
ghuncha-o-gul mein tazgi na rahi

ग़ज़ल

ग़ुंचा-ओ-गुल में ताज़गी न रही

मैकश नागपुरी

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ग़ुंचा-ओ-गुल में ताज़गी न रही
अब बहारों में दिलकशी न रही

अब तो क़िंदील-ए-दिल करो रौशन
बज़्म-ए-हस्ती में रौशनी न रही

जो भी करना है आज ही कर ले
कल ये दुनिया रही रही न रही

वो गले मिल के क्या हुए रुख़्सत
ज़िंदगी जान-ए-ज़िंदगी न रही

कर रहे हैं वो एहतिमाम-ए-ग़म
अब तो मेरी ख़ुशी ख़ुशी न रही

मय-कदा हो गया तह-ओ-बाला
कोई शय मेरे काम की न रही

सारा मय-ख़ाना कश्मकश में है
तर्ज़-ए-'मैकश' में दिलकशी न रही