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ग़ुंचा-दहन वही है कि गूँगा कहें जिसे | शाही शायरी
ghuncha-dahan wahi hai ki gunga kahen jise

ग़ज़ल

ग़ुंचा-दहन वही है कि गूँगा कहें जिसे

ज़रीफ़ लखनवी

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ग़ुंचा-दहन वही है कि गूँगा कहें जिसे
है सर्व-क़द वो अस्ल में लंगड़ा कहें जिसे

मा'शूक़ चाहिए कि हो ऐसा सियाह-फ़ाम
मजनूँ मियाँ भी देख के लैला कहें जिसे

मय को जो इस्तिलाह में कहते हैं दुख़्त-ए-रज़
वो मुग़बचा है रिंदों का साला कहें जिसे

सब जानवर न हज़रत-ए-इंसाँ से क्यूँ डरें
पैदा हैं उस के पेट से हव्वा कहें जिसे

सब उँगलियाँ झुका के अँगूठा उठाइए
बन जाएगी वो शक्ल कि ठेंगा कहीं जिसे