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गुम-शुदा साए ढूँढता हूँ मैं | शाही शायरी
gum-shuda sae DhunDhta hun main

ग़ज़ल

गुम-शुदा साए ढूँढता हूँ मैं

इशरत क़ादरी

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गुम-शुदा साए ढूँढता हूँ मैं
लम्हा बन कर ठहर गया हूँ मैं

ज़ाहिरी शक्ल मेरी ज़िंदा है
और अंदर से मर गया हूँ मैं

रेज़ा रेज़ा किया हवादिस ने
अपने ज़र्रात चुन रहा हूँ मैं

कौन देखेगा मुझ में अब चेहरा
आईना था बिखर गया हूँ मैं

वो रिफ़ाक़त है अब न वो शफ़क़त
कितनी आँखों में झाँकता हूँ मैं

सिसकियाँ चीख़ आह नग़्मा फ़ुग़ाँ
कितने पर्दों की इक सदा हूँ मैं

कोई मुंसिफ़ सज़ा न दे लेकिन
क़ातिलो तुम को जानता हूँ मैं