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गुलों की गर इनायत हो गई तो | शाही शायरी
gulon ki gar inayat ho gai to

ग़ज़ल

गुलों की गर इनायत हो गई तो

आलोक यादव

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गुलों की गर इनायत हो गई तो
उन्हें हम से मोहब्बत हो गई तो

हमें क्यूँ सौंपता है दौलत-ए-हुस्न
अमानत में ख़यानत हो गई तो

किसी की बेकसी पे हँसने वाले
तिरी भी ऐसी हालत हो गई तो

मुझे तू मुझ से बढ़ कर चाहता है
मिरी ख़ुद से अदावत हो गई तो

न लग होंटों से सिगरेट की तरह तू
अगर मुझ को तेरी लत हो गई तो

तू ख़ुद को बद-दुआ' देता है अक्सर
ख़ुदा के घर समाअ'त हो गई तो