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गुलों के दरमियाँ अच्छी लगी हैं | शाही शायरी
gulon ke darmiyan achchhi lagi hain

ग़ज़ल

गुलों के दरमियाँ अच्छी लगी हैं

मोहम्मद अल्वी

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गुलों के दरमियाँ अच्छी लगी हैं
हमें ये तितलियाँ अच्छी लगी हैं

गली में कोई घर अच्छा नहीं था
मगर कुछ खिड़कियाँ अच्छी लगी हैं

नहा कर भीगे बालों को सुखाती
छतों पर लड़कियाँ अच्छी लगी हैं

हिनाई हाथ दरवाज़े से बाहर
और उस में चूड़ियाँ अच्छी लगी हैं

बिछड़ते वक़्त ऐसा भी हुआ है
किसी की सिसकियाँ अच्छी लगी हैं

हसीनों को लिए बैठें हैं 'अल्वी'
तभी तो कुर्सियाँ अच्छी लगी हैं